परिच
प्रसिद्ध समाज विज्ञानी डाल्टन के अनुसार श्री आर. व्ही. रसेल एवं श्री हीरालाल ने "दी ट्राइब्स आफ इंडिया" में लिखा है कि गड़रिया शब्द "गाडार" एवं "या" दो शब्दों से मिलकर बना है। गाडार एक प्राकृतिक शब्द है जिसका अर्थ "भेंड" है। उसी प्रकार "धंग" का संस्कृत अर्थ जंगलों में रहने वालों से है। यह एक मिश्रित जाति है जो जातियों के विभिन्न नामों से अलग - अलग राज्यों में निवास करती है।.
गड़रिया धनगर धनगढ़ जाति एक आदिम जाति है। जिसका मूल एवं पैतृक व्यवसाय भेंड़ पालन करना एवं कम्बल बुनना है पूर्व से ही यह जाति जंगलों में घुम - घुम कर भेंड़ पालन का कार्य करते हुए जीवन यापन करते थे। इसलिए गड़रिया धनगर धनगड़ जाति खाना बदोष के नाम से जाना जाता था किन्तु समय परिवर्तन के साथ- साथ गांवों गलियों में बसते गए। गड़रिया धनगड़ जाति मूलतः आदिवासी जैसे ही है। ये जाति मूलतः रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा, महासमुन्द, धमतरी, कांकेर, बस्तर में पाए जाते है।
भौतिक एवं सांस्कृतिक
- ग्रामों व घरो की सजावट :- गड़रिया धनगड़ जाति के लोग प्रायः समूह ग्रामों में निवास करते है। ये लोग गली मोहल्लों या जंगलों के नजदीक कच्ची मिट्टी से या लकड़ी द्वारा तैयार किये गये मकानों में रहते है। गिली मिट्टी के मकान को गोबर से लिपकर मिट्टी के दिवा को सफेद छुही अथवा लाल पीली रंग के मिट्टी से पोताई कर सफाई करते है। दिवाल 10 - 11 फूट होने पर लकडी के बल्ली तथा बांस छज्जा तैयार करते है। तत्पश्चात देशी खपरैल से छप्पर तैयार करते है।
- घर की स्वच्छता साफ सफाई सजावटः- गड़रिया धनगड़ जाति के लोग घर को साफ सुथरा रखते है। प्रतिदिन गोबर से आंगन एवं घरों के अन्दर की लिपाई करते है।
- व्यक्तिगत स्वच्छता सफाई एवं साज सज्जाः- धनगड़ धनगर गड़रिया जाति के लोग सुबह जल्दी उठने के साथ शौच के लिए खुले जगह खेतों जंगलों में जाते है। बबूल, नीम, करन की पतली डाली से दतौन करते है कुछ लोग वर्तमान में दंतमंजन के साथ ब्रश से दांत साफ करते है। प्रतिदिन नहाया करते है, काली मिट्टी से बाल धोते है तथा पत्थर से हाथ - पैर रगड़कर साफ - सफाई करते है। नहाने के बाद बालों तथा शरीर में तेल लगाते है।
- आभूषण:- गडंरिया धनगर धनगड़ जाति गांव व सुदूर अंचलों में निवास करते है। चांदी, पितल आदि के गहने पहनते है।
- गोदना:- गड़रिया धनगड़ समाज की महिलाएं हाथ, पैर आदि में गोदना गोदते है। यह महिलाओं की पहचान होती है। वर्तमान परिवेश में धीरे - धीरे समाप्त हो रहा है किन्तु प्रत्येक महिलाएं अभी भी कम मात्रा में गोदना गोदते है।
- वस्त्र विन्यास:- गड़रिया धनगढ़ जाति के लोग हेंडलूम से बनी सूती वस्त्र का प्रयोग करते है। पहनावा घुटने तक रहता है। महिलाएं साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज एवं मिलों के कपड़े पहनने लगे है। पुरूष पहले छोटा गमछा पहनते थे वर्तमान में गांव में गमछा, तौलिया, लुंगी, धोती आदि कमर के नीचे तथा कमर के ऊपर बनियान, कमीज, कुर्ता आदि पहनने लगे है। आर्थिक दृष्टि ये सुदृढ़ पुरूष पेंट शर्ट आदि पहनने लगे है।
- रसोई उपकरण एवं भोजन बनाने का उपकरण:- धनगढ़ गड़रिया जाति के लोग भोजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते थे। ग्रमीण अंचलों में आज भी मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाते है। रसोई घर में मिट्टी से बना एक मुंह एवं दो मुंह वाना चूल्हा का उपयोग करते है। इसके अलावा कलछुल, चिमटा, झारा आदि भी होता था। रोटी बनाने के लिए तवा, भात बनान के लिए मिट्टी का बर्तन होता था। वर्तमान समय में इस जाति के लोग एल्युमिनियम, स्टील के बर्तन का प्रयोग करने लगे है। खाना खाने के लिए कांसा, पितल, स्टील के थाली, पानी पीने के लिए कांसा एवं स्टील के गिलास, लोटा का उपयोग किया जाता है।
- घरेलु उपकरण:-धनगढ़ गड़रिया जाति के लोग भोजन पकाने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते थे। ग्रामीण अंचलों में आज भी मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाते है। रसोई घर में मिट्टी से बना एक मुंह एवं दो मुंह वाना चूल्हा का उपयोग करते है। इसके अलावा कलछुल, चिमटा, झारा आदि भी होता था। रोटी बनाने के लिए तवा, भात बनान के लिए मिट्टी का बर्तन होता था। वर्तमान समय में इस जाति के लोग एल्युमिनियम, स्टील के बर्तन का प्रयोग करने लगे है। खाना खाने के लिए कांसा, पितल, स्टील के थाली, पानी पीने के लिए कांसा एवं स्टील के गिलास, लोटा का उपयोग किया जाता है।
- घरेलु उपकरणों में सोने के लिए खाट जो लकड़ी से बना हुआ एवं कांसी एवं बूच की रस्सी से गुथा होता है। ओढ़ने बिछाने के लिए कपड़ा, अनाज धान कुटने के लिए कूषन इत्यादि होते है। इसके अलावा गड़रिया जाति के लोगों का स्वयं का बनाया कंबल, चटाई, भेंड बकरी चराने के लिए लाठी तथा पिड़हा का घरेलु उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। गांव में वर्षा और धूप से बचने के लिए घास से बना छतरी (खुमरी) बिजली के अभाव में लालटेन ढिबरी (चिमनी) का उपयोग किया जाता है।
- कृषि उपकरण:- गड़रिया धनगड़ जाति के लोगो के पास हल, बैलगाड़ी, कुल्हाड़ी, कुदाली, फावड़ा, हसिया,पैसूल आदि प्रमुख रूप् से पाए जाते । हल से खेत की जुताई बैलों के द्वारा किया जाता है। वर्तमान समय में बहुत ही कम लोग ट्रेक्टर द्वारा कृषि कार्य करने लगे है।
- भोजन:- गड़रिया धनगड़ जाति का प्रमुख भोजन चावल, कोदो, उड़द, लाखड़ी एवं मौसमी साग भाजी है। मुख्य त्यौहार दिवाली, दशहरा, तीज, होली, नवाखाई में बकरा, मुर्गा, भेड़ आदि का मांस खाते है।
- मादक द्रव्यों का सेंवन:- विशेष अवसरों पर विभिन्न संस्कारों में महुआ से बना शराब का सेवन करते है। लोग तम्बाकू, गुड़ाखू, बीड़ी हुक्का का भी सेवन करते है।
- इनका मूल व्यवसाय भेड़ पालन एवं कंबल बनाना है। जो चारागाह के अभाव में समाप्ति की ओर है। इसलिए कृषि कार्य करने लगे है। जिनके पास थोड़ी बहुत जमीन होती है खेती करके शेष समय पर दूसरो के मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते है।
- धान की खेती:- जिनके पास थोड़ी बहुत जमीन होती है वे लोग वर्षा के पूर्व खेत की साफ - सफाई करके धान की खेती करते है। धान के पौधे बड़े होने पर बियासी के बाद निदाई करते है। ताकि धान की पौधे की बाढ़ न रूके, धान पकने पर इसे काटकर खलिहान में एकत्रित करके सुखाया जाता है एवं घर में संग्रहित करते है।
- कोदो कुटकी:- कोदो कुटकी की खेती इस समुदाय के जिनके पास भर्री जमीन होता है। उनके द्वारा किया जाता है लेकिन वर्तमान समय में यह उपज कम देखने को मिलता है। फसल पकाने के बाद सुखा कर बैल या लकड़ी से पिटकर दाने को अलग किया जाता है। इसका उपयोग भात या पेज बनाकर करते है।
- उड़द, मूंग, लाखड़ी:- उड़द, मूंग, लाखड़ी का उपयोग दाल के रूप में किया जाता है। लेकिन आर्थिक स्थिति से कमजोर होने के कारण खाने में इसका उपयोग कम परन्तु बेचकर पैसे लिये जाते है। यह इस वर्ग का पैसा कमाने का एक साधन है।
- पशुपालन :- गड़रिया धनगढ़ जाति के लोग भेड़, बकरी, गाय, मुर्गी इत्यादि पालते है। तथा इसे बेचकर अपने गुजर बसर के पैसे एकत्रित करते है। पशुओं की मांग खेती को उपजाऊ बनाने के लिये किये जाते है।
- नौकरी:- धनगढ़ गड़रिया जाति के लोग जो पढ़े लिखे है कुछ नौकरियो में है। लेकिन जिस स्थिति में से लोग है उस स्थिति के कारण नौकरी पेशा में संख्या बहुत कम है इस जाति में शिक्षा का अभाव है।
सामाजिक जीवन:- धनगढ़ गड़रिया जाति की सामाजिक संरचना को जानने के लिए उनकी जाति, उपजाति, वर्ग, नातेदारी परिवार एवं अन्र्तराज्यीय संबंधों का अध्ययन किया जाना आवष्यक है। प्राप्त जानकारी के अनुसार सामाजिक जीवन संबंधी संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-
- वर्गभेंद:- गड़रिया धनगढ़ जाति आदिम जाति है। इस जाति का सृजन भेंड़ चराने से संबंधित है। इस जाति के बीच वर्गभेद देखने को मिलता है। झेरिया, देसहा, ढेगर, निखर, झाड़े एवं वराडे 06 फिरका मुख्य है। सभी गड़रिया जाति में देवी देवताओं का पूजन कर मांस मदिरा खाते पीते है। सभी गड़रिया होने के बाद भी रोटी बेटी का संबंध नही रखते है। जबकि सभी मूलस्थ गड़रिया है। सभी फिरका के लोग अपने आप को दूसरे से उंचा समझते है।
- गोत्र:- गड़रिया धनगढ़ जाति के प्रमुख 06 फिरकों में विभक्त है। किन्तु गोत्र में कोई वर्ग भेद नही है। पोघे, पषु, पक्षी, फल से संबंधित है। जैसे कस्तुमारिया, अहराज, नायकाहा , पाल, बघेल, चंदेल, महतों,हंसा, धनकर, धनगर कांसी आदि है।
- नातेदारी:- इसमें नातेदारी के संबंध को दो भगो में विभक्त किया गया है रक्त संबंध तथा विवाह संबंध। रक्त संबंधी को विवाह संबंधी के आपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। परन्तु प्राथमिक नातेदारी सेु जुड़े रिष्तेदारी में अधिक नाजदीकी का संबंध पाया जाता है। नातेदारी की शब्दावली जो हिन्दी में उपयोग होते है। मौसा - मौसी, नाना - नानी, दामाद, बहु उनके नातेदारी के अनुसार संबंधित किया जाता है।
परिवार:- धनगढ़ धनगर गड़रिया जाति में परिवार पैतृकात्मक, विस्तृत एवं पृतिवंषीय स्थानीय निवास पाया जाता है। संयुक्त परिवार में बड़े बुढे का आदर किया जाता है। उनके सालाह के अनुसार कार्य करते है। विवाह होने के बाद भी पुत्र पिता के साथ रहता है। किन्तु धीरे - धीरे सभी लोग अलग - अलग रहने लगते है। पिता के मृत्यु के पश्चात् जीवित पुत्रो के बीच भूमि का विभाजन कर दिया जाता है।
पारिवारिक संबंध:- परिवार में पारिवारिक संबंध आपस में प्रेम भाव से होता है । आपस में विश्वास एवं प्रेम की कमी होने पर परिवार धीरे धीरे टूटने लगता है। सामान्यतः परिवार के बीच संबंध संक्षिप्त में निम्नानुसार है।
- परिवार का मुखिया प्रायः पिता या संयुक्त परिवार होने पर वृद्ध या बुजुर्ग व्यक्ति होता है। मुखिया या उसकी पत्नी के बीच संबंध मधुर होता है । परिवार में मुखिया होने के कारण परिवार की समस्त जिम्मेदारी होने पर आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करता है।
- पति पत्नी दोनो मिलकर जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाते है। पत्नी पति के कार्यो में सहयोग करती है। इन्ही के कार्यो को देखने के कारण परिवार के अन्य बच्चे अपने मां बाप से पैतृक कार्या को सिख लेते है तथा परिवार की परम्परा एवं समाज की संस्कृति को बनाए रखते है। यही परिवारिक संबंध में मददगार होता है।
- अंतरजातीय संबंध:- धनगढ़ गड़रिया जाति के लोग जहां रहते है। उनका संबंध उनके साथ भाई चारे का रहता है। वर्षों से उनके साथ रहने के कारण कई बार पारिवारिक संबंध स्थापित हो जाता है। जिससे उनके सुख, दुख, काम - काज एवं अन्य महत्वपूर्ण कार्यो में भी मदद करते है।
- स्त्रियों की स्थिति:- गड़रिया धनगढ़ जाति के महिलाओं की स्थिति सोचनीच है। महिला घर के समस्त कार्यो को निपटाकर खेती, मजदूरी करती है। काम से आने के बाद घर की सफाई, चूल्हा चैका बर्तन आदि में लग जाती है। इस प्रकार दिन भर काम करती रहती है इस जाति की महिलाएं प्रायः निरक्षर होती है। दिनभर के काम काज एवं धूप में रहने के कारण शरीर का रंग सामान्यतः सांवली तथा काली होती है। बुजुर्ग होने के साथ ही सम्मान बढ़ता जाता है।
जीवन चक्र:-
धनगढ़ धनगर गड़रिया जाति के जीवन चक्र में मुख्यतः जन्म संस्कार, विवाह संस्कार एवं मृत्यु संस्कार का ही अधिक महत्व है। जो निम्नानुसार है -
- जन्म संस्कार:- स्त्री की रक्त स्वाल में अपवित्र नही माना जाता है। मां के गर्भ में बच्चा पलने पर परम्परानुसार 07 महिने में सधौरी खिलाते है। गर्भवती महिला के मायके पक्ष के लोग ससुराल में पहुंचकर इस खिलाते है। बच्चा पैदा होने पर जातीय रीति रिवाज एवं परम्परा कं अनुसार उनका छः दिन में छट्ठी मनाते है। इस अवधि में बच्चा व मां छोहर छुआ मानते है। उनको छुआ छुत मानते हुए देवता घर में नही रखते है। तथा पूजा नही कराते है। छट्ठी के बाद बारहवे दिन बरही करते है। तत्पष्चात् घर के धार्मिक कार्यो में शरीक होते है।
- विवाह संस्कार:- सगोत्र विवाह पूरी तरह वर्जित है। इनके नातेदारी में कही कही मामा, फूफू का लेन देन चलता है। वर पक्ष के लोग लड़की मांगने के लिए लड़की के पिता के घर जाते है।
- मृत्यु संस्कार:- गड़रिया धनगड़ जाति की मृत्यु होने पर शरीर को जलाते है। तीसरा दिन फूल (हड्डी) को घाट से चुनकर लाते है। बड़ा पुत्र छोटा भाई एवं अन्य रिश्तेदार उसके हड्डी को धार्मिक नदियों में प्रवाहित करते है। मृत्यु का कार्यक्रम 10 वे दिन संपन्न होता है। उस दिन सगोत्र पुरूष मुंडन कराते है। अपने मान्यता के अनुसार दान दक्षिणा करते है तथा अपने स्वजातीय लोगों को मृत्यु भोज खिलातें है।
धार्मिक जीवन एवं त्योहार:-
धनगढ़ गड़रिया जाति के सभी वर्ग की प्रकृति धार्मिक है। मुख्य त्योहार हरियाली, गणेश, तीजा, पोला, नवरात्र, नवाखाई, दिवाली, दशहरा, होली आदि है। भक्ति में अपने देवी देवताओं के मान्यता के रूप में मानते है। कुवांर एवं चैत में जवारा, आषाढ़ एवं अघहन में पूजाई, कार्तिक में नवाखाई एवं पूस माह मे छेर छेरा त्योहार मानते है।
देवी देवताओं:- आदिवासियों की भांति धनगढ़ गड़रिया जाति में भी पंचदेव की मान्यता प्रचलित है। यह जाति घर में जवारा, पूजाई, विवाह के समय धूरपईया आदि पुरातन मान्यतायें है। गड़रिया जाति दूल्हादेव को मानते है। कालीमाई, कंकाली, महामाई एवं दुर्गा जी को मानते है।
- दूल्हादेव के आधार पर घर में विवाह रचाकर मनौती मानते है।
- नवरात्र में कंकाली देवी को घर में जवारा बोकर मानते है।
- अपने जानवर भेड़ की रक्षा के लिए पूजाई कर पूजा अर्चना करते है।
भौतिक एवं संस्कृति मे परिवर्तन:-
- गड़रिया धनगढ़ धनगर जाति के लोग पहले मिट्टी के बने खपरैल के घर में रहते थे। अब स्थिति परिवर्तित होने लगी है। लोग पक्का मकान बनवाने लगे है। लालटेन एवं ढिबरी के जगह बिजली का उपयोग कर रहे है।
- पहनावे में परिवर्तन:- धनगढ़ धनगर गड़रिया जाति के सभी वर्ग के पहनावे में परिवर्तन आया है। हेडलुम कपड़े की जगह मिलों में तैयार किए गए कपड़े को दर्जी से सिले हुए कपड़े आधुनिक फैशन के अनुसार पहनने लगे है।
- आर्थिक परिवर्तन:- गड़रिया धनगढ़ गड़रिया जाति की स्थिति दयनीय है। उसमें धीरे धीरे परिवर्तन की शुरुवात हुआ है। लोग उन्नत कृषि करने का प्रयास कर रहे है एवं नये कृषि पैदावार का लाभ ले रहे है।
- सामाजिक स्थिति में परिवर्तन:- धनगर धनगड़ गड़रिया जातियों में पहले संयुक्त परिवार अधिकांष देखने को मिलता था। अब छोटे छोटे परिवार में विभक्त हो गए है। इस जाति में 06 वर्गभेद है। झेरिया, ढेगरए देसहा, निखर, झाडे वराडे सभी के बीच ऊंच नीच का भेद भाव है। वक्त की आवश्यकता के अनुसार अब एक जुट हो रहे है।
- मध्यप्रदेश में अभी भी पाल जाति पिछड़ी है जो दूसरों पर निर्भर है , जो आज तक पुराने ख्यालातो को मानती आ रही है..यहां पाल जाति को आगे बढ़ाने और समाज सुधार हेतु अब "पाल समाज छतरपुर म.प्र." युवा संगठन ने कदम उठाया है , जिसका मुख्य उद्देश्य समाज की पुरानी कुरीतियो जैसे - बाल विवाह, दहेज प्रथा, बालश्रम,और अन्य बुराइयों के खिलाफ डटकर विरोधकर समाज शिक्षित करना हैै।
Nice attempt
ReplyDeleteNikhar cast which dist.? In chhattisgarh
ReplyDeleteछत्तीसगढ़ में निखर फिरका के गड़रिया कोरिया, सुरजपुर में अधिकांश हैं।
DeleteAgar up me sc ka certificate nahi ban raha to obc ka to milna hi chaiye pr ab wo bhi nahi bna rhe tehsil me
ReplyDeleteI am chandel
ReplyDeleteमै तो राय चंदेल गोत्र का हूं
ReplyDeleteमैं भी
DeleteRai chandel k kuldev aur kuldevi Kaun ha
DeleteMai Hirnwar Gotr ka Hu
ReplyDeleteMai bhi bhi
Deletejai pal samaj
ReplyDeleteBhi ye pidwad kiska gotr h jruri btaye
ReplyDeletePindwar Nikhar ka gotra hai
DeleteJai pal samaj
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ReplyDeleteChandel
ReplyDeleteपाल समाज ( गडरिया)तो पुरे विश्व में फैला है और विश्व का सबसे बड़ा समाज है. इतने गौत्र है कि बताना भी मुमकिन नहीं है.भारत के 29 राज्यों में पाल समाज की उपस्थिति है.भारत के सभी समाजों की उत्पत्ति गडरिया समाज से ही हुई है.आपको मेरी बातों पर यकिन तब आयेगा जब आप सारे गौत्रों का और कुल देवी देवताओं का सुक्ष्म अध्ययन करेंगे.
ReplyDeleteआपसे बात करनी है , 8827772902
Deleteविपिन पाल इन्दौर मध्यप्रदेश से
ReplyDeleteJITENDRA BAGHEL AGRA UTTAR PRADESH
ReplyDeletegotra hinwar
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ReplyDeleteBihar ke gareri jati aur dhangar jati alag alag hai ki ek hin?
ReplyDeleteOkk
ReplyDeleteगौत्र फुलसिंगा
ReplyDeleteSir dhangar ka jotra kya h
DeleteBhai m bhi fulsingha hu,
ReplyDeletePar hum apne,bhaghel, dhangar samaj se pray karte hai sab ek ho jao or dhangar certificate jald se jald ban jaye or jo bachche govt job ki tyari kar rhe hai unko labh mill jaye, jay ma ahilya bai holkar ki 🙏🙏🙏🙏🙏
9602636412
ReplyDeleteGirish Singh Baghel
Gotra (kokande)
Nagvanshi gotra kya gadiriyo mein aata h kya ya bharava gotr, plz information h to btaye
DeleteBhai baba adam ke jamane ka itihas likha hai kya, pahle to sabhi kache makano mai rehte the. Ap e to adivasiyo ka varnan kar diya
ReplyDeleteRahul dhangar
ReplyDeleteGotra Parihar
Up hathras
Matadeen gadriya gotra thammar
ReplyDeleteAre Hirnwal and Hirnwal sagbate same gotra?
ReplyDeleteMera bamania h yr bataa do kon sa vala pal hu ma
ReplyDeleteहमारे कुलदेवी देवता का मंदिर कहा है
ReplyDeleteहमारे कुलदेवी देवता 5 है, दुल्हादेव, महाकाली, कंकालीन, महामाई और दुर्गा लेकिन घर के मुख्य देवी देवता कोन है
ReplyDeleteभगवान शिव जी
ReplyDeleteShivam Pal
ReplyDeleteDhanua Gotra
Semari Mirzapur
मेरी गौत्र खंडोड़ हे मे भी धनगर गायरी हू क्या आप मे से कोई बता सकते है मेरी कुलदेवी किन सी है
ReplyDeleteढ़ेगर का गौत्र क्या है?
ReplyDeleteManoj Rautela
ReplyDeleteMain Rautela ghotra ka ho